What is Inheritance Tax: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले इनहेरिटेंस टैक्स यानी कि विरासत कर को लेकर सियासी बवाल मचा है. कांग्रेस के सैम पित्रोदा के एक बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दल को फिर घेरा है.
मध्य प्रदेश के मुरैना में गुरुवार (25 अप्रैल, 2024) को चुनावी जनसभा के दौरान उन्होंने कहा- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मां इंदिरा गांधी के निधन के बाद “संपत्ति बचाने के लिए पहले से मौजूद विरासत कानून को खत्म कर दिया था.”
विरासत कर को लेकर चुनावी समर में दावों, आरोप-प्रत्यारोप और बयानबाजी के बीच समझिए कि असल में यह टैक्स क्या है, कैसे वसूला जाता है और दुनिया भर के किन-किन मुल्कों में फिलहाल लागू होता है. आइए, जानते हैं इस बारे में:
‘विरासत कर’ आखिर है क्या?
विरासत कर को एस्टेट टैक्स (Estate Tax) के नाम से भी जाना जाता है. भारत में साल 1985 तक इसी तरह का कर देखने को मिलता था, जिसमें किसी व्यक्ति की जीवन भर की गाढ़ी कमाई और संपत्ति उसकी मौत के बाद बच्चे को ट्रांसफर होती थी और बच्चे को उस कुल रकम/संपत्ति पर सरकार को टैक्स चुकाना पड़ता था.
उदाहरण के जरिए समझिए
मान लीजिए कि सुरेश कुमार नाम के कारोबारी के पास एक करोड़ रुपए की संपत्ति और दौलत है. अचानक उनकी मृत्यु हो जाती है, जिसके बाद यह पूरी रकम उनके बेटी निशा कुमारी के पास चली जाती है. अब निशा कुमारी को इसी कुल रकम और संपत्ति पर सरकार को 50 फीसदी टैक्स देना पड़ेगा. यानी उन्हें 50 लाख रुपए सरकार को विरासत कर या एस्टेट टैक्स के रूप में देने होंगे और शेष रकम उनके पास ही रहेगी. यही विरासत कर या एस्टेट टैक्स कहलाता है.
1953 में लाया गया था Estate Tax
मौजूदा समय में देश में विरासत टैक्स अमल में नहीं है. हालांकि, पहले एस्टेट टैक्स लगाया जाता था, जिसे 1985 में खत्म कर दिया गया था. यह साल 1953 में लाया गया था. चूंकि, देश को इससे कुछ साल पहले ही आजादी मिली थी और तब गरीबी थी. आर्थिक तौर पर असमानता थी. सरकार की तब सोच थी कि अमीर लोगों का पैसा अगर उनके बच्चों के पास जाएगा तब समाज में यह असमानता और बढ़ जाएगी. यही वजह थी कि इस कर को एक एक्ट (अधिनियम) के जरिए लाया गया था.
…तो इतनी थी भारत में इस कर की दर
एस्टेट टैक्स तब चल और अचल संपत्ति – दोनों पर ही लगाया जाता था. जानकारी के मुताबिक, भारत में तब जिसके पास 20 लाख रुपए से अधिक की संपत्ति होती थी, उस पर 85 फीसदी यह टैक्स लगता था. अगर किसी के पास तब कम से कम एक लाख रुपए की संपत्तियां हैं, तब इस कर की दर साढ़े सात फीसदी हुआ करती थी. इस तरह से रकम और संपत्तियों के हिसाब से टैक्स की दर भी बढ़ जाती थी.
खत्म क्यों किया गया था एस्टेट टैक्स?
साल 1985 में राजीव गांधी की सरकार आई थी और तब वित्त मंत्री वीपी सिंह थे. चूंकि, इस टैक्स को लेकर लोगों के बीच खासा नाराजगी थी और जिस मकसद को ध्यान में रखकर इसे लाया गया था, वह असल में पूरा नहीं हो पा रहा था. 1984-85 में एस्टेट टैक्स के नाम पर सरकार के पास लगभग 20 करोड़ रुपए ही आते थे, जबकि इसे कलेक्ट या रिकवर करने की कीमत इस रकम (कलेक्शन) से अधिक थी. ऐसे में वीपी सिंह ने इस टैक्स को कई कारणों और जटिलताओं के चलते खत्म कर दिया था. यह टैक्स तब एक तरह से बड़ी विफलता माना गया था.